Notes: Payment of Wages Act, 1936 in hindi

मजदूरी संदाय अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act, 1936) भारत में कर्मचारियों को उनके वेतन का समय पर और बिना किसी अनुचित कटौती के भुगतान सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण श्रम कानून है। यह अधिनियम कुछ वर्गों के नियोजित व्यक्तियों की मजदूरी के भुगतान को विनियमित करता है।

यहाँ इस अधिनियम से संबंधित विस्तृत नोट्स हिंदी में बिंदुवार दिए गए हैं:

मजदूरी संदाय अधिनियम, 1936

उद्देश्य (Objective):

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य कुछ औद्योगिक और रेलवे कर्मचारियों को मजदूरी का समय पर भुगतान सुनिश्चित करना और उनकी मजदूरी से अनुचित कटौतियों को रोकना है।

मुख्य विशेषताएं (Salient Features):

  • नियमित और समय पर मजदूरी का भुगतान: यह अधिनियम निर्धारित करता है कि मजदूरी का भुगतान नियमित रूप से और एक निश्चित समय-सीमा के भीतर किया जाना चाहिए।
  • अनुचित कटौतियों पर रोक: यह अधिनियम केवल कुछ विशिष्ट कटौतियों की अनुमति देता है और अन्य सभी अनुचित कटौतियों पर रोक लगाता है।
  • दंड का प्रावधान: अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर नियोक्ता के लिए दंड का प्रावधान है।
  • शिकायत निवारण तंत्र: कर्मचारियों को मजदूरी के भुगतान में देरी या अनुचित कटौती के मामलों में शिकायत दर्ज कराने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।

अधिनियम का विस्तार और लागू होना (Extent and Applicability):

  • यह अधिनियम पूरे भारत में लागू होता है।
  • यह मुख्य रूप से उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो किसी कारखाने, रेलवे या अन्य अधिसूचित प्रतिष्ठानों में कार्यरत हैं।
  • यह अधिनियम उन कर्मचारियों पर लागू होता है जिनकी मजदूरी एक निश्चित सीमा (वर्तमान में ₹24,000 प्रति माह या सरकार द्वारा अधिसूचित उच्च राशि) से अधिक नहीं होती।

अधिनियम के महत्वपूर्ण खंड और बिंदुवार नोट्स (Important Sections and Pointwise Notes):

अध्याय I: प्रारंभिक (Preliminary)

  • धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना (Short title, extent, commencement and application):
    • यह अधिनियम “मजदूरी संदाय अधिनियम, 1936” कहलाता है।
    • इसका विस्तार पूरे भारत पर है।
    • यह केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि पर लागू हुआ।
    • यह कारखानों, रेलवे और अन्य निर्दिष्ट प्रतिष्ठानों में नियोजित व्यक्तियों पर लागू होता है। उपयुक्त सरकार (केंद्र/राज्य) अन्य प्रतिष्ठानों पर भी इसे लागू कर सकती है।
    • यह उन कर्मचारियों पर लागू होता है जिनकी मजदूरी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमा (वर्तमान में ₹24,000 प्रति माह) से अधिक नहीं है।
  • धारा 2: परिभाषाएँ (Definitions):
    • समुचित सरकार (Appropriate Government): रेलवे, हवाई परिवहन सेवाओं, खानों और तेल क्षेत्रों के संबंध में केंद्र सरकार और अन्य सभी मामलों में राज्य सरकार।
    • कारखाना (Factory): कारखाना अधिनियम, 1948 में परिभाषित।
    • नियोजित व्यक्ति (Employed Person): वह व्यक्ति जिसे मजदूरी का भुगतान किया जाता है।
    • नियोजक (Employer): वह व्यक्ति जो किसी भी प्रतिष्ठान में नियोजित व्यक्ति को मजदूरी का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है।
    • मजदूरी (Wages): मजदूरी से अभिप्राय उन सभी परिलब्धियों से है, जो नियोजन के अनुबंध या किसी अधिनियम के उपबंधों के अधीन नियोजित व्यक्ति को उसके नियोजन के लिए या उसके द्वारा किए गए काम के लिए संदेय हैं, चाहे वे मुद्रा में व्यक्त की गई हों या नहीं। इसमें शामिल नहीं हैं:
      • किसी भी आवास के मूल्य की अनुमानित गणना।
      • नियोजन से जुड़ी किसी भी विशेष व्यय की पूर्ति के लिए दिया गया यात्रा भत्ता, ग्रेच्युटी आदि।
      • सेवा समाप्ति पर देय ग्रेच्युटी या अन्य राशि, जो देयता की राशि निर्धारित करने में लगने वाले समय के लिए भुगतान के लिए कोई प्रावधान नहीं करती है।
      • किसी न्यायालय के आदेश के अधीन कोई राशि।
      • मालिक द्वारा प्रदान की गई चिकित्सा सुविधाएं।
      • प्रोविडेंट फंड में मालिक का योगदान।
      • यात्रा रियायत का मूल्य।
      • समय से पहले सेवा समाप्ति पर देय कोई राशि।
      • उपहार (Presents) या उपहार (Gifts)।
    • मजदूरी अवधि (Wage-period): वह अवधि जिसके संबंध में मजदूरी का भुगतान किया जाता है, जो एक महीने से अधिक नहीं हो सकती।

अध्याय II: मजदूरी का भुगतान (Payment of Wages)

  • धारा 3: मजदूरी के संदाय के लिए उत्तरदायित्व (Responsibility for payment of wages):
    • प्रत्येक नियोक्ता अपने अधीन नियोजित व्यक्तियों को मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार है।
    • कारखाने के मामले में प्रबंधक, रेलवे प्रशासन के मामले में निर्दिष्ट व्यक्ति, और ठेकेदार द्वारा नियोजित व्यक्तियों के मामले में ठेकेदार जिम्मेदार होगा।
  • धारा 4: मजदूरी अवधियों का नियत किया जाना (Fixation of wage-periods):
    • प्रत्येक जिम्मेदार व्यक्ति को मजदूरी अवधि तय करनी होगी।
    • मजदूरी अवधि एक महीने से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • धारा 5: मजदूरी के संदाय का समय (Time of payment of wages):
    • यदि 1000 से कम व्यक्ति नियोजित हैं, तो मजदूरी का भुगतान मजदूरी अवधि की समाप्ति के सातवें दिन से पहले किया जाना चाहिए।
    • यदि 1000 या उससे अधिक व्यक्ति नियोजित हैं, तो मजदूरी का भुगतान मजदूरी अवधि की समाप्ति के दसवें दिन से पहले किया जाना चाहिए।
    • किसी कर्मचारी के नियोजन की समाप्ति पर, उसकी मजदूरी का भुगतान उसकी सेवा समाप्ति के दूसरे कार्य दिवस से पहले किया जाना चाहिए।
  • धारा 6: मजदूरी का चालू सिक्कों या करेंसी नोटों में या चेक द्वारा या बैंक खाते में जमा करके संदाय किया जाना (Wages to be paid in current coin or currency notes or by cheque or crediting in bank account):
    • मजदूरी का भुगतान चालू सिक्कों, करेंसी नोटों, चेक या बैंक खाते में जमा करके किया जा सकता है, जैसा कि उपयुक्त सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए।
  • धारा 7: वे कटौतियाँ जो मजदूरी से की जा सकेंगी (Deductions which may be made from wages):
    • मजदूरी से केवल अधिनियम में निर्दिष्ट कटौतियाँ ही की जा सकती हैं। कोई अन्य कटौती अवैध है।
    • अनुमत कटौतियाँ हैं:
      • जुर्माना (Fines)
      • कर्तव्य से अनुपस्थिति (Absence from duty) के लिए कटौती
      • नियोजक द्वारा प्रदान की गई आवासीय सुविधा या अन्य सेवाओं के लिए कटौती
      • सामग्री को नुकसान या हानि के लिए कटौती
      • अग्रिम राशि (Advances) की वसूली
      • ऋण की वसूली
      • आयकर की वसूली
      • सहकारी समितियों को भुगतान
      • जीवन बीमा निगम को भुगतान
      • प्रोविडेंट फंड या कर्मचारी राज्य बीमा योजना में योगदान
      • अदालत के आदेश से की गई कटौतियाँ

अध्याय III: मजदूरी से कटौतियाँ (Deductions from Wages)

  • धारा 8: जुर्माने (Fines):
    • जुर्माना केवल उन कृत्यों या लोपों के लिए लगाया जा सकता है जिन्हें नियोक्ता ने राज्य सरकार की पूर्व अनुमति से अधिसूचित किया है।
    • जुर्माने की राशि मजदूरी के 3% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
    • 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।
    • कर्मचारी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
    • सभी जुर्माने एक रजिस्टर में दर्ज किए जाने चाहिए और कर्मचारियों के लाभ के लिए उपयोग किए जाने चाहिए।
  • धारा 9: कर्तव्य से अनुपस्थिति के लिए कटौतियाँ (Deductions for absence from duty):
    • यदि कोई कर्मचारी काम से अनुपस्थित रहता है, तो नियोक्ता उस अवधि के लिए मजदूरी में कटौती कर सकता है।
    • एक निश्चित अवधि के लिए मजदूरी की कटौती उस अवधि में अनुपस्थिति के अनुपात में होगी।
  • धारा 10: नुकसान या हानि के लिए कटौतियाँ (Deductions for damage or loss):
    • नियोजक द्वारा सौंपे गए माल या धन को नुकसान या हानि के लिए कटौती की जा सकती है, यदि नुकसान या हानि कर्मचारी की लापरवाही या चूक के कारण हुई हो।
    • कर्मचारी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
    • नुकसान की राशि वसूली योग्य राशि से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • धारा 11: सेवाओं के लिए कटौतियाँ (Deductions for services rendered):
    • नियोजक द्वारा प्रदान की गई आवास सुविधा या अन्य सेवाओं के लिए उचित कटौती की जा सकती है।
  • धारा 12: अग्रिमों की वसूली के लिए कटौतियाँ (Deductions for recovery of advances):
    • दिए गए अग्रिमों की वसूली मजदूरी से की जा सकती है।
    • अग्रिमों की वसूली किश्तों में की जानी चाहिए।
  • धारा 12A: ऋणों की वसूली के लिए कटौतियाँ (Deductions for recovery of loans):
    • नियोजक द्वारा दिए गए ऋणों की वसूली भी मजदूरी से की जा सकती है।
  • धारा 13: सहकारी समितियों और बीमा योजनाओं को संदाय के लिए कटौतियाँ (Deductions for payments to co-operative societies and insurance schemes):
    • कर्मचारी की लिखित सहमति से सहकारी समितियों को भुगतान या बीमा योजनाओं के लिए कटौतियाँ की जा सकती हैं।

अध्याय IV: प्रक्रियात्मक प्रावधान (Procedural Provisions)

  • धारा 13A: रजिस्टरों और अभिलेखों का रखा जाना (Maintenance of registers and records):
    • नियोजक को मजदूरी, कटौतियों और प्राप्तियों का रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है।
  • धारा 14: निरीक्षक (Inspectors):
    • उपयुक्त सरकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए निरीक्षक नियुक्त कर सकती है।
    • निरीक्षकों को किसी भी परिसर में प्रवेश करने, रिकॉर्ड की जांच करने और साक्ष्य एकत्र करने की शक्ति है।
  • धारा 15: मजदूरी से कटौतियों या मजदूरी के संदाय में विलंब से उद्भूत दावे और विद्वेषपूर्ण या तंग करने वाले दावों के लिए शास्ति (Claims arising out of deductions from wages or delay in payment of wages and penalty for malicious or vexatious claims):
    • कर्मचारी मजदूरी से अनुचित कटौती या भुगतान में देरी के संबंध में प्राधिकरण के समक्ष दावा दायर कर सकता है।
    • यह दावा कटौती या देरी के कारण की तारीख से 12 महीने के भीतर किया जाना चाहिए।
    • यदि दावा सही पाया जाता है, तो प्राधिकरण नियोक्ता को देय राशि का भुगतान करने और मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दे सकता है, जो कटौती की गई राशि या विलंबित मजदूरी के दस गुना तक हो सकता है।
    • झूठे या परेशान करने वाले दावों के लिए जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • धारा 16: अदत्त समूह से संबंधित दावों के संबंध में एकल आवेदन (Single application in respect of claims from unpaid group):
    • एक ही नियोक्ता के कई कर्मचारियों के समान प्रकृति के दावों के लिए एक एकल आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • धारा 17: अपील (Appeal):
    • धारा 15 के तहत प्राधिकरण के आदेश के खिलाफ जिला न्यायालय में अपील की जा सकती है।
  • धारा 20: अधिनियम के अधीन अपराधों के लिए शास्ति (Penalty for offences under the Act):
    • अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर नियोक्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • धारा 22: वादों का वर्जन (Bar of Suits):
    • इस अधिनियम के तहत निपटाए जा सकने वाले किसी भी दावे के लिए कोई भी सिविल न्यायालय क्षेत्राधिकार नहीं रखेगा।
  • धारा 26: नियम बनाने की शक्ति (Rule-making power):
    • उपयुक्त सरकार अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बना सकती है।

यह अधिनियम श्रमिकों के हितों की रक्षा करने और उन्हें समय पर और उचित मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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